Tuesday, 18 December 2012

शायराना..

कितनी घड़ियाँ बीत गयी
वोह नज़र आये नहीं
पूछे निगाहें गुजरी बात है कोई
वोह नज़रे मिलाने पास आये नहीं

वोह इंतेजार करते रहे, हम आये नहीं
रोज-दराज की चीजें, आज वहां थी नहीं
कहाँ तो था, कुछ वक़्त तो बीत जाने दो
ये दिल ही कमबख्त, किसीका कहाँ मानें नहीं

कितना भी दूर जा मुझसे तू..
कितनी भी होने दे खामोशियान..,
हम वोह परिंदे है,
जो आशियाने भूलाते नही..

है अगर चाहतें दिलों में, तो कैसी ये तनहाइयाँ
है अगर नफरतें जो भरी, तो क्यूँ ये नजदीकियाँ
क्या पाओगे ऐसी कर नादानियाँ
लड़ जाने दे नैन, मिट जाने दे ये दूरियाँ

- रोहित


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