कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
की ज़िन्दगी तेरी जुल्फों की नरम छाओं 
में गुजरने पाती 
तो शादाप हो भी सकती थी..
ये रंज-ओ-गम की स्याही जो दिल पे 
छाई है,
तेरी नज़र की शुवाओं में खो भी सकती थी.. 
मगर ये हो न सका.. 
मगर ये हो
 न सका और अब ये आलम है,
की तू नही तेरा गम, तेरी जुस्तजू भी नही..
गुजर रही 
है कुछ इस तरह ज़िन्दगी जैसे, 
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नही.. 
न कोई 
राह, न मंजिल, न रोशनी का सुराख़, 
भटक रही है अंधेरों में ज़िन्दगी मेरी.. 
इन्ही अंधेरों में रह जाऊंगा कभी खोकर.. 
मै जानता हूँ मेरी हमनफस, मगर यु ही 
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है.. 
_____ फिल्म कभी कभी
 
 
 
 
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